वो भारतीय गेंदबाज जिसकी रफ्तार बल्लेबाजों को डराती थी, लेकिन उसका अचानक करियर कम हो गया

भारत के लिए कहा जाता है कि यहां पर तेज गेंदबाज नहीं होते. लेकिन इसका सच्चाई से ज्यादा वास्ता नहीं है. समय-समय पर भारत में कई तेज गेंदबाज उभरे हैं. जिनकी गेंदें मीडियम पेस में नहीं आती थी बल्कि बल्लेबाज के पास से जब गुजरती थी तो ऐसा लगता था मानो कोई रॉकेट गुजरा हो. बल्ले से टकराती थी तो उसे थामने हाथ झनझना उठते थे. ऐसा ही एक तेज गेंदबाज पंजाब से आया था. अंडर 19 से उसने जगह बनाई और फिर घरेलू क्रिकेट में रणजी ट्रॉफी के साथ टीम इंडिया तक पहुंचा. लेकिन चोट और इंटरनेशनल क्रिकेट के दबाव में वह बिखर गया. भारत के लिए पांच टेस्ट और दो वनडे खेले लेकिन विकेटों का कॉलम निराशाजनक रहा. कहां गए वो लोग में आज बात पंजाब के पूर्व तेज गेंदबाज विक्रम राज वीर सिंह की. जो वीआरवी सिंह के नाम से ज्यादा जाने जाते हैं.

वीआरवी सिंह अंडर 19 सिस्टम की खोज थे. 2004 के अंडर 19 वर्ल्ड कप में खेले थे. लेकिन यहां केवल एक मैच खेल सके जिसमें कुछ खास हुआ नहीं. लेकिन तेज रफ्तार गेंदबाजी के चलते उन्हें बॉर्डर-गावस्कर स्कॉलरशिप मिली. इसके बूते उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में ट्रेनिंग की. बाएं हाथ के तेज गेंदबाज आरपी सिंह इस दौरान उनके साथी थे. साल 2005 में उन्होंने पंजाब के फर्स्ट क्लास क्रिकेट में कदम रखा और कमाल कर दिया. रणजी ट्रॉफी के सात मैच में 20.67 की औसत से उन्होंने 34 विकेट चटकाए. इस दौरान 75 रन देकर सात विकेट उनका सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा. 2005 में ही चैलेंजर ट्रॉफी में भी उनकी तेज रफ्तार गेंदों का कमाल दिखा. इसके चलते उन्हें श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज के लिए बुला लिया गया. लेकिन वे फिटनेस टेस्ट में फेल रहे और टीम से बाहर हो गए.

फिर जब फिटनेस पास किया और फिर से टीम इंडिया में आए तो बायां पैर चोटिल करा बैठे. अबकी बार चोट ठीक होने के इंतजार में बाहर गए. लेकिन चयनकर्ताओं ने उन पर नज़र बनाए रखी. यही वजह रही कि साल 2006 में इंग्लैंड के खिलाफ सात वनडे की सीरीज में वीआरवी सिंह को चुना गया. जमशेदपुर वनडे में उनका डेब्यू हुआ. उन्होंने पांच ओवर डाले और 33 रन दिए. इंदौर में हुए अगले वनडे में भी वे खेले. इस बार सात ओवर में 72 रन दिए. दोबारा कभी फिर वनडे नहीं खेल सके.

बाद के सालों में वीआरवी सिंह को चोटों से भी जूझना पड़ा. इसके चलते वे कभी पहले जैसे गेंदबाज नहीं बन सके. साल 2008 से 2012 के बीच वे पंजाब के लिए एक भी मैच नहीं खेल पाए. साल 2019 में उन्होंने संन्यास का ऐलान कर दिया. संन्यास का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा था कि उनका करियर अधूरा रहा. उनके कई सुनहरे साल चोट की वजह से खराब हो गए. बाद में वीआरवी सिंह चंडीगढ़ के कोच बन गए.

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आदर्श कुमार

संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ