उमरिया-मुख्यालय करकेली ब्लाक के अंतर्गत ग्राम पंचायत गोपालपुर में कम उम्र के बच्चे काम करते नजर आ रहे हैं.
सूत्रों की माने तो ऐसे ही कई आस-पास के पंचायतों की स्थिति बनी हुई है स्थानीय जनप्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासन द्वारा प्रशासन के आंख में धूल झोंकते नजर आए. जहां सरकार कहती है कि बाल श्रम कानून अधिनियम की धारा 1986 के तहत बच्चों से काम करवाना गैर कानूनी है और इसे अपराध माना गया है.
लेकिन इस पंचायत में इस बात पर ध्यान ना देते हुए कानून की धज्जियां उड़ाते हुए छोटे-छोटे बच्चों से सुबह से शाम तक मिट्टी फेंकने से लेकर भरवाने तक का काम करवाया जाता है, यहां पर किसी भी अधिकारी द्वारा पंचायत में चल रहे काम में किसी भी प्रकार की जांच या देखरेख नहीं की जाती जिसके कारण यह सारी लापरवाहीयां होती हैं ना तो बच्चों की उम्र देखते हैं.
और ना तो बच्चों के भविष्य की परवाह करते है अब इस खबर को देखने के बाद देखना है कि शासन प्रशासन और अधिकारी कितनी हरकत में आते हैं या इसे नजरअंदाज कर देते हैं.
सवांददाता: कंचन साहू
दस्तक खास:
बाल श्रम एक सामाजिक बुराई है जो एक समाज के एक कमजोर वर्ग की गरीबी व अशिक्षा से जुड़ी है। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान मैक्स मूलर ने कहा है कि ’’ पश्चिम में बच्चे दायित्व समझे जाते हैं जबकि पूर्व में बच्चे सम्पति’’ यह कथन भारत के संदर्भ में शत्-प्रतिशत सही है। 14 वर्ष के कम उम्र के बच्चे जो नियोजित है उन्हें बाल श्रमिक कहा जाता है जिनके हित संरक्षण हेतु बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 बनाया गया है जिसकी धारा-3 के अंतर्गत अधिसूचित खतरनाक क्षेत्रों में बाल श्रमिक नियोजन पूर्णतः प्रतिबंधित है जो मुख्यतः निम्न है:-
- बीड़ी बनाना, तम्बाकू प्रशंसकरण
- गलीचे बुनना
- सीमेंट कारखाने में सीमेंट बनाना या थैलों में भरना
- कपड़ा बुनाई, छपाई या रंगाई
- माचिस, पटाखे या बारूद बनाना
- अभ्रक या माईका काटना या तोड़ना
- चमड़ा या लाख बनाना
- साबुन बनाना
- चमड़े की पीटाई, रंगाई या सिलाई
- ऊन की सफाई
- मकान, सड़क, वाहन आदि बनाना
- स्लेट पेंसिल बनाना व पैक करना
- गुमेद की वस्तुएं बनाना
- मोटर गाड़ी वर्कशॉप व गैरेज
- ईंट भट्ठा व खपरैल
- अगरबत्ती बनाना
- आटोमोबाईल मरम्म्त
- जूट कपड़ा बनाना
- कांच का सामान बनाना
- जलाऊ कोयला और कोयला ईंट का निर्माण
- कृषि प्रक्रिया में ट्रेक्टर या मशीन में उपयोग
- कोई ऐसा काम जिसमें शीसा, पारा, मैगनीज, क्रोमियम, अगरबत्ती, वैक्सीन, कीटनाशक दवाई और ऐसबेस्टस जैसे जहरीली धातु व पदार्थ उपयोग में लाये जाते हैं आदि।
खतरनाक क्षेत्रों में बाल श्रमिक नियोजित किये जाने पर धारा-14 के अंतर्गत दोषी नियोजक को कम से कम तीन माह एवं अधिकतम 1 वर्ष का कारावास एवं कम से कम 10 हजार रूपये तथा अधिकतम 20 हजार रूपये का जुर्माना से दंडित किया जावेगा।
गैर खतरनाक क्षेत्रों में बाल श्रमिक कार्य कर सकते हैं परंतु निम्न प्रावधानों का पालन किया जाना अनिवार्य है:-
- बच्चों से 6 घंटे से अधिक समय तक काम नहीं करवाया जा सकता है।
- एक साथ तीन घंटों से ज्यादा उनसे काम नहीं किया जा सकता है।
- रात के 7 बजे से लेकर सुबह 8 बजे के बीच में उनसे कोई भी काम नहीं लिया जा सकता।
- सप्ताह में उन्हें कम से कम एक दिन छुट्टी दी जानी चाहिए।
सबसे अच्छा तो यह है कि बच्चों को किसी काम पर रखा ही नहीं जाये क्योंकि इससे उनके सेहत पर बुरा असर पड़ता है और शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। उन्हें पढ़ने का मौका भी नहीं मिल पाता है। बचपन तो खेलने खाने और पढ़ने के लिए होता है। हर बच्चे को उनके यह अधिकार दिलाया जाना चाहिए। 06 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करना संविधान के अनुच्छेद 21 ’’ए’’ के तहत मौलिक अधिकार है तथा माता पिता व संरक्षक का अनुच्छेद 51 क भारतीय संविधान के तहत 06 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा दिलाया जाना मौलिक कर्तव्य है।
अतः अधिकार एवं कर्तव्य का अनिवार्य रूप से पालन होना चाहिए।