जिस साल इंडिया वर्ल्ड कप जीती थी, उसी साल एक फिल्म आई थी (1983, इफ यू आर स्टिल वंडरिंग ). फिल्में तो बहुत सी आई थीं, लेकिन ये वाली खास थी. क्योंकि इससे सुपरस्टार एक्ट्रेस नूतन का बेटा डेब्यू करने जा रहा था. मोहनीश बहल. भोला-भाला सा दिखता था लेकिन आने वाले समय में दुनिया को उसने अपने कई रंग दिखाए. खैर, पहली फिल्म पर आते हैं. मोहनीश बहल बताते हैं कि वो कभी फिल्मों में नहीं आना चाहते थे. उनका सपना था कमर्शियल पायलट बनने का. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. 1976 में डायरेक्टर राज खोसला नूतन के साथ फिल्म ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ बना रहे थे, जो 1978 में रिलीज़ हुई. वो फिल्म के सेट पर पहली बार मोहनीश से मिले. तब मोहनीश की उम्र मात्र 15 साल थी. अगली बार दोनों तीन साल बाद मिले. मोहनीश को देखते ही राज ने नूतन से पूछा लिया कि मोहनीश फिल्मों में एक्टिंग करने में इंट्रेस्टेड हैं क्या?
इसके बाद बात धीरे-धीरे आगे बढ़ी. मोहनीश अंग्रेजी मीडियम से थे. साफ लहज़े के लिए उन्हें उर्दू की ट्रेनिंग लेनी पड़ी. इंडस्ट्री में खबर फैल गई कि नूतन का बेटा फिल्मों में आ रहा है. तब तक संजय दत्त और कुमार गौरव जैसे स्टारकिड फिल्मों में काम करना शुरू कर चुके थे. अब इस लिस्ट में मोहनीश बहल का भी नाम जुड़ने को था. लेकिन वो क्या चीज़ थी, जो मोहनीश को एक्टिंग की ओर खींचकर ले गई. इसका जवाब मोहनीश ने कुछ ऐसे दिया. उन्होंने कहा कि 1981-82 में उन्हें 500 रुपए पॉकेट मनी मिलती थी. इस फिल्म के लिए उन्हें एक लाख रुपए की फीस मिल रही थी. ये ऑफर भला कोई आदमी कैसे ठुकराता. सो आ गए फिल्मों में.
1982 में एक तेलुगू फिल्म आई. नाम था ‘नलुगु स्तंभलता’. रिलीज़ के अगले ही साल इसे हिन्दी में रीमेक किया जा रहा था, जिसमें संजय दत्त, पद्मिनी कोल्हापुरी, सुप्रिया पाठक और मोहनीश बहल को साइन किया गया. इसे नाम दिया गया ‘बेकरार’. इस फिल्म से नूतन का बेटा डेब्यू कर रहा था, इसलिए पूरी फिल्म इंडस्ट्री की इसपर नज़र थी. लेकिन फिल्म नहीं चली. कई कारण गिनाए गए. जैसे संजय दत्त उस समय अपने लाइफ के ‘लो फेज़’ में चल रहे थे और मोहनीश नए थे.