कांग्रेस पर पार्टी के बाहर से भी प्रभावी विपक्ष बनने का दबाव, क्षेत्रीय दल जल्द अपना घर दुरुस्त करने की दे रहे नसीहत,जानें विस्तार से

अंदरूनी राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रही कांग्रेस पर अब पार्टी के बाहर से भी प्रभावी विपक्ष बनने का दबाव बनने लगा है। भाजपा से सियासी दूरी रखने वाली विपक्षी खेमे की कई पार्टियां, कांग्रेस में उथल-पुथल और असमंजस के दौर को लेकर इस कदर बेचैन हो रही हैं कि अब वे कांग्रेस को अपने अंदरूनी घमासान का तुरंत समाधान कर प्रभावशाली विपक्ष की भूमिका में आने की नसीहत भी देने लगी हैं। इसमें क्षेत्रीय पार्टियां और यूपीए के सहयोगी दल ही नहीं वामदल भी शामिल हैं।
विपक्षी खेमे के दलों की ओर से बढ़ रहे इस दबाव का कांग्रेस को अहसास भी हो रहा मगर पार्टी के नए नेतृत्व पर फैसले की कायम दुविधा उसके कदमों की जंजीर साबित हो रही है। इस दुविधा के बीच कांग्रेस के प्रभावी विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पाने को लेकर माकपा महासचिव सीताराम येचुरी की ताजा टिप्पणी पार्टी इस मामले में पार्टी पर लगातार बढ़ते दबाव का ताजा सुबूत है।
येचुरी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद देश के राजनीतिक विमर्श को एकतरफा चिंताजनक मोड़ देने के भाजपा के एजेंडे को चुनौती देने में विपक्ष की कमजोरी की सबसे बड़ी वजह कांग्रेस के अपने अंदरूनी संघर्ष से उबर नहीं पाने को बताया है। साथ ही यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि विपक्षी खेमे के सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस अपनी दुरुस्त भूमिका नहीं निभा पाई है।
माकपा से पूर्व कांग्रेस के सहयोगी दल राकांपा ने भी भाजपा के बढ़ते राजनीतिक प्रभुत्व में लगातार कमजोर होते विपक्ष पर अपनी चिंता का इजहार किया था। महाराष्ट्र की सत्ता में उसकी नई साझेदार बनी शिवसेना ने तो विपक्ष का नेतृत्व कर पाने में कांग्रेस की क्षमता पर ही सवाल उठाते हुए यूपीए का नेतृत्व शरद पवार को सौंपने की वकालत की थी। शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में पवार को बकायदा विपक्षी दलों का सर्वमान्य चेहरा भी बताया गया।
यद्यपि पवार ने खुद ही यूपीए के नेतृत्व की दौड़ से अलग कर इसे विवाद में तब्दील नहीं होने दिया। जाहिर तौर पर शिवसेना का यह खुला दबाव कांग्रेस को नागवार लगा और उसने शिवसेना के यूपीए का हिस्सा नहीं होने का तर्क देकर उसकी आवाज थामने की कोशिश की। लेकिन विपक्षी दलों की एकजुटता की वकालत करने के साथ कांग्रेस से सौहार्दपूर्ण रिश्ते रखने वाले येचुरी की टिप्पणी शिवसेना के बाद आई है और जाहिर तौर पर यह पार्टी की चिंता में इजाफा करेगी।
वैसे बिहार चुनाव के नतीजों के बाद से ही यूपीए की एक और घटक राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी भी कांग्रेस के मौजूदा राजनीतिक ऊहापोह के दौर पर तीखे सवाल उठा चुके हैं। तिवारी ने तो सीधे राहुल गांधी पर भी निशाना साधा था। हालांकि यह अलग बात है कि राजद ने आधिकारिक तौर पर शिवानंद के बयान से तब दूरी बना ली थी। यूपीए के सबसे पुराने सहयोगी द्रमुक के नेता स्टालिन ने भी कुछ समय पहले इशारों-इशारों में कांग्रेस को अपनी अंदरूनी चुनौती से उबर कर विपक्षी नेतृत्व को मजबूती से आगे बढ़ाने की सलाह देने से गुरेज नहीं किया था।

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आदर्श कुमार

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