बिहार के विधानसभा चुनाव के नतीजों से नई दिशा लेगी विपक्षी एकजुटता की पहल

बिहार चुनाव की सियासी करवट चाहे जो रहे कांग्रेस भविष्य की राजनीति के लिए विपक्षी एकजुटता की नये सिरे से पहल को आगे बढ़ाएगी। एग्जिट पोल के अनुमानों के हिसाब से महागठबंधन ने चुनाव में बाजी मारी तो बिहार का यह प्रयोग उन सभी राज्यों में दोहराने की कोशिश होगी जहां भाजपा सत्ता की दावेदारी में है। पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों के साथ अगले साल होने वाले चुनाव के लिए गठबंधन का सैद्धांतिक फैसला कर कांग्रेस ने इसका संकेत दे भी दिया है।
बिहार चुनाव के नतीजों के बाद विपक्षी एकजुटता की नये सिरे से होने वाली पहल तात्कालिक रुप से किसानों से जुड़े केंद्रीय कानून के खिलाफ मजबूत लड़ाई पर साझेदारी का हो, लेकिन इसका दूरगामी लक्ष्य सूबों में गैर भाजपा दलों को एकजुट करना रहेगा। केंद्र में पहले ही बेहद मजबूत बन चुकी भाजपा की राज्यसभा में बढ़ती ताकत कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की चिंता बढ़ा रही है। ऐसे में पार्टी का मानना है कि राज्यों की सत्ता में जहां भाजपा का वर्चस्व है वहां इसे कम किया जाए। इसके लिए पार्टी के निजी हितों को कुछ हद तक किनारे रखते हुए भाजपा की मुखालफत करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों से सियासी दोस्ती को मजबूती देने से भी गुरेज नहीं होगा।
इस रणनीति को आगे बढ़ाने में कांग्रेस को दोहरी उम्मीद नजर आ रही है। सबसे पहली कि चुनाव दर चुनाव भाजपा या एनडीए शासित राज्यों की संख्या कम होगी। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ नया गठबंधन तो झारखंड में झामुमो से दोस्ती को मजबूत करने का फायदा इन दोनों सूबों में विपक्ष को मिला है। कांग्रेस को यह भी लगता है कि राज्यों में सत्ता का हिस्सा बनने के बाद पार्टी के संकुचित हुए आधार को फिर से विस्तार देने के साथ नेताओं और कार्यकर्ताओं की नई पौध तैयार करने का भी मौका मिलेगा। इसका दूसरा लाभ यह होगा कि विधानसभा में संयुक्त संख्या बल के सहारे आगे होने वाले राज्यसभा चुनावों में भाजपा के सीटों की संख्या को घटाने में मदद मिलेगी। राज्यसभा में संख्या बल की वजह से ही विपक्ष की संसद में अब तक आवाज सुनाई देती रही है।
बिहार चुनाव के बाद विपक्षी एकजुटता की नये सिरे से पहल की जरूरत पर चर्चा करते हुए कांग्रेस के एक थिंक-टैंक ने कहा कि महागठबंधन को सूबे में नई सियासी करवट की वैसे तो पूरी उम्मीद है, लेकिन सूबे की सत्ता में वापस आना जितना अहम है उतना ही महत्वपूर्ण भाजपा की 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से सजाई जा रही सियासी फील्डिंग को भांपते हुए इसका मुकाबला करना है। इस फील्डिंग की व्याख्या करते हुए उनका तर्क था कि जदयू की सीटें कम आने की स्थिति में भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का पीएम मोदी का सार्वजनिक वादा इसी दूरगामी रणनीति का हिस्सा है।
चूंकि अधिकांश राज्यों में भाजपा अपने चरम पर पहुंच चुकी है और अगले आम चुनाव में उसकी सीटें कम होने की संभावना है। ऐसे में भाजपा अब गठबंधन को लेकर ज्यादा रिस्क नहीं लेने का संकेत दे रही है। जब भाजपा की सियासी रणनीति में गठबंधन की अहमियत दिख रही है तो फिर बिहार के चुनाव के नतीजों से इतर जाकर विपक्षी दलों को इस चुनौती के लिए तैयार करने की पहल कांग्रेस को करनी ही पड़ेगी।

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आदर्श कुमार

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