अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटों की गिनती का दौर थम गया है। और अब अमेरिका के नए मुखिया होंगे बाइडेन। अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के लिए कुल 270 इलेक्टोरल वोट्स की जरूरत होती है ।वाइट हाउस में अब बाइडेन की एंट्री होगी और कमला हैरिस उनकी डेप्युटी होंगी। भारत के लिहाज से अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव बेहद अहम होता है क्योंकि हाल के दिनों में अमेरिका के साथ उसका सहयोग काफी बढ़ा है। चीन के साथ लद्दाख सीमा पर तनाव ने भारत और अमेरिका को और करीब ला दिया है। तनाव की स्थिति अब भी बरकरार है, ऐसे में नए राष्ट्रपति का रुख कैसा रहता है, यह देखने वाली बात होगी। बाइडेन का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना भारत के लिए अच्छा है या बुरा, इसके कुछ संकेत पिछले दिनों मिले हैं।
भारत में एक धड़ा मानता है कि बाइडेन और हैरिस जिस तरह से जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार और एनआरसी-सीएए को लेकर मुखर रहे हैं, उससे भारत को परेशानी हो सकती है। लेकिन कुछ बयानों के आधार पर दोनों को जज करना सही नहीं होगा। बाइडेन दशकों तक फॉरेन पॉलिसी से जुड़े मुद्दों पर काम करते रहे हैं। उन्हें बेहतर अंदाजा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौन से मुद्दे अहम हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, बाइडेन और ट्रंप में बुनियादी फर्क यह है कि बाइडेन दूरदर्शी हैं और ट्रंप बड़बोले। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक लेख में अमेरिकी प्रोफेसर सुमित गांगुली लिखते हैं कि मोदी के साथ बेहतर तालमेल के बावजूद ट्रंप ने कई मौकों पर भारत को बड़े झटके दिए हैं। उनके मुताबिक, बाइडेन सोच-समझकर फैसला करने वालों में से हैं, ऐसे में वह भारत के लिए ज्यादा मुफीद हैं।
बाइडेन के भारत-पाकिस्तान विवाद या चीन के साथ जारी तनाव में ज्यादा दखल देने की उम्मीद कम ही है। वह कई दशक तक अमेरिकी विदेश विभाग के लिए काम कर चुके हैं। इसके अलावा ट्रंप से अलग, वह अपने सलाहकारों की बात सुनने के लिए जाने जाते हैं। बाइडेन किसी एक घटना या मुद्दे के आधार पर भारत के प्रति अमेरिकी नीति में बदलाव लाने के इच्छुक नहीं दिखते। इसके अलावा प्रवासियों को लेकर भी बाइडेन का रुख नरम है जबकि ट्रंप कई मौकों पर खुलकर वीजा पर लिमिट लगाने की बात कर चुके हैं। ट्रंप ने भारत के साथ व्यापारिक स्तर पर धींगामुश्ती जारी रखी। बाइडेन के ऐसा करने की उम्मीद कम है।
डेमोक्रेट प्रशासन में भारत की स्थिति और बेहतर हो सकती है। ट्रंप ने चीन को लेकर जिस तरह से मोर्चा खोला, उससे पर्सेप्शन बैटल में भारत को फायदा हुआ लेकिन इससे भारत के अमेरिका का पिछलग्गू बनने की बातें होने लगीं। पाकिस्तान को लेकर ट्रंप प्रशासन ने पहले सख्ती दिखाई लेकिन अफगानिस्तान में बातचीत में उसके आगे झुक गया। बाइडेन कहते हैं कि दक्षिण एशिया में आतंक पर कोई समझौता नहीं होगा। बाइडेन ने ही पहले भारत और अमेरिका में भारतीय-अमरीकियों ने लिए विस्तृत एजेंडा जारी किया था। कश्मीर को लेकर ट्रंप के मध्यस्थता के ऑफर ने भारत के होश उड़ा दिए थे। बाइडेन कश्मीर को लेकर मुखर रहे हैं लेकिन इसे चुनावी स्टंट भी कहा जा सकता है। कश्मीर पर बयान देने के ठीक बाद ही उन्होंने एक और संदेश में भारत को ‘प्राकृतिक साझेदार’ बताया था। बाइडेन ने कहा था कि अगर वे चुने जाते हैं कि दोनों देशों के बीच रिश्तों को मजबूत करना उनकी प्रॉयरिटी लिस्ट में ऊपर रहेगा।
बाइडेन का मानना है कि भारत और अमेरिका को नैचरल सहयोगी ही होना चाहिए। उनके पहले डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा के दिनों में दोनों देशों के बीच संबंध खासे बेहतर हुए थे। 2006 में बाइडेन ने बतौर सीनेटर अपने एजेंडा में कहा था कि उन्हें भरोसा है कि एक दिन भारत और अमेरिका दो सबसे करीबी देश होंगे। जब भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लिअर डील होने वाली थी तो बाइडेन ने बाकी डेमोक्रेट्स से इस डील का समर्थन करने को कहा था। सीएए-एनआरसी पर उनके बयानों को संदर्भ के साथ देखने की जरूरत है।
-आदर्श कुमार (सम्पादक)