राजनीति में फर्श से अर्श और अर्श से फर्श पर आते देर नहीं लगती। 2015 चुनाव के बाद अचानक बिहार की राजनीति के अर्श पर विराजमान हुए प्रशांत किशोर इस बार चुनावी परिदृश्य से एकदम गायब हैं। बक्सर के अहिरौली स्थित उनके घर पर भी पूरी तरह सन्नाटा पसरा है। हालांकि, वे यहां कभी कभार ही आते हैं, लेकिन उनके शिखर काल मे घर मे सरकारी गार्ड दिखने लगे थे। जब वे जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए थे तब यहां खासी हलचल रहती थी।
वर्ष 2015 में महागठबंधन की जीत में वे अहम रणनीतिकार बनकर उभरे थे। ‘बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है’ जैसे उनके दिए गए स्लोगन तब हिट हुए थे। चुनाव बाद इसका इनाम भी उन्हें मिला और नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी में शामिल करते हुए सीधे जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। हालांकि, ब्रांड गुरु के तौर पर पहचान बना चुके पीके का राजनीति के शिखर पर पहुंचने से पहले ही अवसान शुरू हो गया। सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ऊपर हमला बोलते-बोलते मामला ऐसा उलझा कि अंततः उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उनके एक करीबी ने बताया कि
इस विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर किसी पार्टी के ना तो संपर्क में हैं, ना मदद कर रहे हैं।
जिले के प्रख्यात चिकित्सक रहे डॉ.श्रीकांत पांडे के पुत्र प्रशांत किशोर पांडेय ने जेडीयू से छुट्टी किये जाने के बाद कुछ दिन तक तो अपनी राजनीतिक पाठशाला चलाई लेकिन, बाद में कोरोना काल के दौरान वह पूरी तरह से फ्रेम से गायब हो गए हैं। फरवरी 2020 की ही बात है प्रशांत किशोर ने ‘बात बिहार की’ राजनीतिक अभियान शुरू किया था। सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा भी शुरू हुई। इसमें उन्होंने दावा किया था कि वे बिहार में युवाओं को राजनीति में चांस देंगे । लेकिन मार्च से ही उन्होंने रहस्यमयी चुप्पी साध ली। अब तो उनकी चर्चा भी गाहे-बगाहे ही हो जाती है।