केंद्र सरकार ने गुरुवार को कहा कि 14 सितंबर से शुरू हो रहे मानसून सत्र के दौरान संसद में पूछे गए हर सवाल का जवाब दिया जाएगा। सरकार का कहना है कि हर दिन 160 अतारांकित सवालों का जवाब दिया जाएगा। सत्र में प्रश्नकाल शामिल नहीं करने पर विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए सरकारी सूत्रों ने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब किसी सत्र में प्रश्नकाल नहीं होगा।
इससे पहले 2009, 2004, 1991, 1976, 1975 और 1962 में भी विभिन्न कारणों से प्रश्नकाल नहीं हुआ था। सरकार का कहना है कि कोविड-19 महामारी की वजह से देश में स्वास्थ्य आपातकाल है और इस सत्र का आयोजन असामान्य परिस्थितियों में किया जा रहा है। सूत्रों की दलील है कि महामारी के दौरान कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों की विधानसभाओं में भी प्रश्नकाल नहीं हुआ।
यही नहीं इन राज्यों में विधानसभा सत्रों का आयोजन भी एक से तीन दिनों के लिए किया जा रहा है। उधर, कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सरकार पर लोकतंत्र को कुचलने और संसदीय प्रणाली को बंधक बनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस कदम का संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह विरोध करेगी।
बसपा सांसद दानिश अली ने कहा, ‘कोई ट्वीट करता है तो अवमानना होती है, अगर आप सड़कों पर सवाल करते हैं तो राजद्रोह होता है। लोगों के सवाल पूछने के लिए देश की सबसे बड़ी पंचायत बची थी। वहां भी सरकार ने प्रश्नकाल हटा दिया.. यह नए भारत की भयावह तस्वीर है।’ राकांपा प्रवक्ता महेश तापसे ने आरोप लगाया कि विभिन्न मोर्चो पर अपनी असफलता छिपाने को प्रश्नकाल रद करने के लिए भाजपा कोविड-19 महामारी की आड़ ले रही है।