चीन के राजदूत सुन वीडोंग ने शुक्रवार को एक विस्तृत बयान जारी किया , ‘वर्ष 1990 के बाद से ही इस तरह की सहमति है कि हम प्रतिद्वंदी नहीं है बल्कि साझेदार हैं।

दो हफ्ते पहले तक सीमा विवाद पर बेहद सख्त रुख दिखा रहे चीन का सुर अब बदला सा है। अब वह भारत को अपने द्विपक्षीय रिश्तों की दुहाई दे रहा है और कह रहा है कि, हम साझेदार हैं, प्रतिद्वंदी नहीं और हमें एक दूसरे पर भरोसा करना चाहिए शंका नहीं। यह उद्गार नई दिल्ली में चीन के राजदूत सुन वीडोंग ने शुक्रवार को एक विस्तृत बयान जारी कर व्यक्त किया।
वीडोंग के इस बयान को चीन सरकार की तरफ से भारत-चीन के बीच पिछले दो महीने से भी ज्यादा समय से जारी सैन्य विवाद के संदर्भ में अभी तक का सबसे महत्वपूर्ण बयान माना जा रहा है। एक बड़ी कूटनीति के तहत इस बयान में सीमा विवाद पर कम, भारत-चीन रिश्तों के आर्थिक व दूसरे पहलुओं पर ज्यादा जोर दिया गया है। चीन पहले भी कहता रहा है कि भारत को दोस्ती की ‘बड़ी तस्वीर’ पर नजर रखनी चाहिए।

वीडोंग ने कहा है कि ‘वर्ष 1990 के बाद से ही इस तरह की सहमति है कि हम प्रतिद्वंदी नहीं है बल्कि साझेदार हैं।’ 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच पहली अनौपचारिक वार्ता में भी यही सहमति बनी थी। हाल ही में जो सीमा विवाद हुआ है उसे कुछ पक्ष बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहे हैं और चीन की मंशा के बारे में भी गलत प्रचार कर रहे हैं। हजारों वर्ष पुराने पड़ोसियों को दुश्मन और रणनीतिक प्रतिस्प‌र्द्धी के तौर पर पेश किया जा रहा है। यह खतरनाक है और किसी को इससे फायदा नहीं होगा।
उन्होंने आगे कहा है कि भारत व चीन के बीच शांति चाहिए, टकराव नहीं। दोनों के बीच जो सीमा विवाद है वह विरासत में मिला हुआ है। हमें इसका एक ऐसा समाधान निकालना है जो दोनों पक्षों को मान्य हो। इसके लिए बातचीत कर रहे हैं और कई तरह की व्यवस्थाएं भी की हैं। कूटनीतिक व सैन्य स्तर पर लगातार संपर्क बना कर रखा गया है। दोनों पक्ष यह भी मानते हैं कि सीमा पर अमन व शांति द्विपक्षीय रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है। दोनों देशों के बीच यह बुद्धिमता है कि वे इन विवादों को ठीक सुलझा सकें और मतभेद पैदा करने वालों की चाल में नहीं आएं।

भारत में चीन में बनी वस्तुओं और सेवाओं के विरोध में चल रहे अभियान पर राजदूत वीडोंग ने अपनी बात रखते हुए कहा है कि भारत व चीन के बीच आर्थिक रिश्तों के मजबूत होने से सबसे ज्यादा फायदा भारत के कारोबारी जगत व यहां की जनता को है।

चीन के उत्पादों व कंपनियों के खिलाफ कदम उठाने से फायदा नहीं नुकसान होगा

चीन के उत्पादों व कंपनियों के खिलाफ कदम उठाना चीनी कंपनियों के साथ ही इसमें काम करने वाले भारतीय कर्मचारियों और भारतीय ग्राहकों के साथ भी अन्याय होगा। इससे किसी का भी फायदा नहीं होगा, लेकिन नुकसान सभी का होगा।
उन्होंने आगे राष्ट्रपति चिनफिंग का उद्धृत करते हुए कहा है कि परस्पर आदर ही द्विपक्षीय रिश्तों की सबसे अहम बुनियाद होती है। ‘हमें परस्पर भरोसा बनाना होगा और एक दूसरे को बराबरी का समझना होगा। एक दूसरे की चिंताओं और हितों को समझना होगा और एक दूसरे के मामले में या आंतरिक मामले में दखल नहीं देने की नीति को अपनाना होगा। संदेह करना और विवाद पैदा करना एक गलत रास्ता है।’