चीनी सेना ने पैर खींचे है, फिर भी भारत कर रहा है निगरानी , भारत पहले से ज्यादा है सतर्क

गलवन नदी घाटी में चीनी सेना ने पैर पीछे खींचे हैं, लेकिन भारत इस बार कोई भी कोताही बरतने नहीं जा रहा। 6 जून, 2020 को कमांडर स्तरीय वार्ता के तुरंत बाद भी चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने पीछे हटने के संकेत दिए थे जो असलियत में एक धोखा था। यही वजह है कि भारत फिलहाल पहले से ज्यादा सतर्क रहेगा और पूरे हालात की कड़ी निगरानी भी करेगा।

सूत्रों के मुताबिक 15 जून की हिंसक घटना के बाद भारत ने जिस तरह से यह स्पष्ट संदेश दिया है कि चीन के साथ उसकी नीति अब पूरी तरह से बदली हुई होगी, इसका बहुत असर पड़ा है। खास तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी की लेह यात्रा के बाद चीन के पक्ष में स्पष्ट तौर पर बदलाव दिखा है। मोदी की यात्रा के दो दिनों में दोनो पक्षों के बीच कई माध्यमों से संपर्क स्थापित हुआ है। अंतिम संपर्क एनएसए अजीत डोभाल व चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच रविवार को सीमा विवाद को लेकर हुई बातचीत से हुआ है। इनके बीच वार्ता के बाद चीनी पक्ष की तरफ से जारी बयान में चीन के रुख में बदलाव साफ तौर पर झलक रहा है। इसमें एक तरफ भारत व चीन के रिश्तों को सुधारने को लेकर हाल ही में की गई कोशिशों का उदाहरण है तो दोनो देशों के बीच दीर्घकालिक रणनीतिक हितों को सर्वप्रमुख प्राथमिकता देने की भी बात है।’कूटनीति काम कर रही है, लेकिन निगरानी पहले से ज्यादा जरूरी है।’ वैसे भारत के इस रुख में कोई बदलाव नहीं आया है कि चीन के सैनिकों के पूरी तरह से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर मई, 2020 से पहले वाली स्थिति में वापसी ही पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में शांति व स्थायित्व कायम करेगा।
आगे कहा गया है कि, दोनों देशों को द्विपक्षीय रिश्तों की मौजूदा अड़चनों को जल्द से जल्द दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। यही नहीं इसमें यह भी कहा गया है कि चीन अपनी भौगोलिक अखंडता व सीमा क्षेत्र में शांति व स्थायित्व की कड़ाई से रक्षा करेगा। अभी तक चीन भौगोलिक अखंडता की बात ज्यादा करता रहा है।
चीन के विदेश मंत्रालय ने आगे उम्मीद जताई है कि भारत चीन के साथ मिल कर जनता की राय को सही दिशा में ले जाने का काम करेगा, द्विपक्षीय आदान-प्रदान व संबंधों को आगे बढ़ाएगा व विवाद को और बिगाड़ने की कोशिश नहीं करेगा। भारत व चीन के रिश्तों के बड़े लक्ष्यों को ध्यान में रखकर कहा गया है।’ इस बयान को आम भारतीय जनमानस में चीन के प्रति बढ़े रहे गुस्से और चीन के उत्पादों के खिलाफ उठाये जाने वाले सरकारी कदमों से जोड़ कर देखा जा सकता है।