आपके मोबाइल फ़ोन से लेकर विज्ञापनों के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले बड़े-बड़े डिस्प्ले बोर्डों तक एक बहुत ही बड़ी रेंज के उत्पादों में इस जादुई लाइट बल्ब का इस्तमाल किया जाता है। जिसे आप सब तरफ देख सकते हैं।
वर्तमान में इसकी लोकप्रियता और उपयोग दिनोंदिन बढते ही जा रहे हैं। जिसके लिए इसकी कुछ बहुत ही बेहतरीन खूबियाँ जिम्मेदार हैं। खासतौर पर LED बहुत ही छोटे होते हैं और ये बहुत कम पॉवर पर चलते हैं।
LED बनाने के लिए जिस पद्धार्थ का इस्तेमाल होता है वो अलुमिनियम-गैलियम-आर्सेनाइड (AlGaAs) है। इसके वास्तविक स्वरूप यानि कि ओरिजिनल स्टेट में इस पद्धार्थ के अणु बहुत ही मजबूती से जुड़े होते हैं। यहाँ मुक्त इलेक्ट्रान नहीं होने के कारण इसमें बिजली या करंट पास होना सम्भव नहीं होता।
इस बात को सम्भव करने के लिए इसमें एक अशुद्धता को मिलाया किया जाता है जिसे सेमीकंडक्टर फिजिक्स की भाषा में डोपिंग कहा जाता है, जिसके अंतर्गत इसमें अतिरिक्त अणुओं को मिलाया जाता है, जिससे की पद्धार्थ की आण्विक संरचना का संतुलन अस्थिर हो जाता है। ये एक तरह की मिलावट ही है।
इन अशुद्धियों को मिलाने से, जो की अतिरिक्त अणुओं के रूप में होती हैं, वो पद्धार्थ की मूल आण्विक संरचना में या तो मुक्त इलेक्ट्रान देते हैं (N-type) या वहाँ पहले से उपस्थित मौजूदा इलेक्ट्रॉनों को निकाल देते हैं (P-Type), जिससे मूल पद्धार्थ की आण्विक कक्षाओं में छेद यानि कि “holes” बन जाते हैं।
इन दोनों तरीकों से अशुद्धियां मिलाने के कारण मूल पद्धार्थ बहुत ही अधिक सुचालक हो जाते है। जिसके कारण इलेक्ट्रिक करंट के प्रभाव से N-type पद्धार्थ में इलेक्ट्रान एनोड (पॉजिटिव) से कैथोड (नेगेटिव) की तरफ और P-type पद्धार्थ में इसके विपरीत बहने में सक्षम हो जाते हैं। जबकि सेमीकंडक्टर गुणों के अनुसार इन सम्बंधित मामलों में करंट कभी भी विपरीत दिशा में नहीं बहता।
किसी स्रोत LED से कितनी तीव्रता से रोशनी उत्सर्जित होगी ये बात उत्सर्जित फोटोन के एनर्जी स्तर पर निर्भर करती है, और ये स्तर सेमीकंडक्टर पद्धार्थ की आण्विक कक्षा में इलेक्ट्रान के जम्प करने से मुक्त हुई ऊर्जा द्वारा निर्धारित किया जाता है।
जैसे की हम जानते हैं की इलेक्ट्रान को निचली कक्षा से ऊपरी कक्षा में ले जाने के लिए उसके एनर्जी के स्तर को बढ़ाया जाता है। ठीक इसी तरह यदि इलेक्ट्रान को ऊपरी कक्षा से निचली कक्षा में लाना हो तो उसके एनर्जी स्तर को कम किया जाता है।
और LED में इसी फेनोमेना को सही रूप से इस्तमाल किया जाता है। P-type डोपिंग वाले सेमीकंडक्टर पद्धार्थ में इलेक्ट्रॉन्स ऊपरी कक्षाओं से निचली कक्षाओं की तरफ जाते हैं। जिससे इनकी एनर्जी फोटोन के रूप में मुक्त होती है, और यही फोटोन दरअसल लाइट या रोशनी है जो कि LED उत्सर्जित करती है। और ये कक्षाएं एक दूसरे से जितनी ज्यादा दूर होंगी, उतनी ही ज्यादा तीव्रता की रोशनी उत्सर्जित होगी।
इस प्रक्रिया में अलग-अलग वेवलेंग्थ के अनुसार LED में अलग-अलग रंग निर्मित होते हैं। और वेवलैंग्थ का निर्धारण सेमीकंडक्टर के प्रकार पर निर्भर करता है, अतः LED से कौन से रंग की रोशनी उत्सर्जित होगी यह बात उसमें इस्तेमाल किये गए सेमीकंडक्टर पद्धार्थ के प्रकार पर निर्भर करती है।