Lok Sabha Election 2019 सम्पन्न हुए। BJP के नेतृत्व में NDA को प्रचंड बहुमत मिला और उनका आंकड़ा 352 तक पहुंच गया। नरेंद्र मोदी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद पीएम नरेंद्र मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री होंगे जो दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटे हैं। इस चुनाव से जुड़ी जीत-हार की तमाम कहानियां आपने पढ़ ली हैं। जो भी घटना होती है उससे कुछ सबक या टेकअवे होते हैं, जो हमें आगे की राह दिखाते हैं। चलिए जानते हैं Lok Sabha Election 2019 के 8 टेकअवे…
1. चाहिए मजबूत नेतृत्व…
देश की जनता ने एक बार फिर NDA के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है। इससे भी बड़ी बात यह है कि जनता ने अकेले भाजपा को ही 303 सीटें दी हैं, जो बहुमत के जादुई आंकड़े से 31 ज्यादा है। यानि देश में अगले पांच साल एक मजबूत सरकार होगी, जिसे छोटे सहयोगी दल समर्थन वापस लेने की धमकी देकर ब्लैकमेल नहीं कर पाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में देश को एक बार फिर मजबूत नेतृत्व मिलेगा। पीएम मोदी की छवि गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान से ही एक सख्त प्रशासक की रही है और अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने अपनी इस छवि की झलक बार-बार दिखायी भी है। फिर चाहे वह सर्जिकल स्ट्राइक और एयरस्ट्राइक हो, नोटबंदी हो या जीएसटी लागू करने को लेकर निर्णय लेना हो।
2. नहीं चाहिए टुकड़े-टुकड़े गैंग
जेएनयू की वो घटना तो आपको याद ही होगी, जिसकी वजह से देश में बवाल मच गया था। दिल्ली स्थित जेएनयू में छात्रसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार के रहते JNU परिसर में ‘भारत के टुकड़े-टुकड़े’ होने और ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं’ जैसे राष्ट्रविरोधी नारे लगे थे। पुलिस की कार्रवाई पर पूरा विपक्ष एक होकर ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के बचाव में उतर आया था। विपक्ष को कन्हैया कुमार में संभावना दिखी और सीपीआई ने उन्हें बिहार की बेगुसराय सीट से अपना उम्मीदवार बना दिया। सीपीआई भले ही कन्हैया कुमार को पसंद करती हो, लेकिन बेगुसराय की जनता ने उन्हें नकार दिया। उन्हें सिर्फ 22.03 फीसद यानि कुल 269976 वोट मिले, जबकि विजयी भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह को 56.48 फीसद यानि 692193 वोट मिले। रिजल्ट ऐसा आएगा इसकी उम्मीद तो शायद गिरिराज सिंह को भी नहीं होगी, जो बेगुसराय से टिकट मिलने पर नाराजगी जता रहे थे। वैसे बेगुसराय में चुनाव प्रचार के दौरान ही कन्हैया कुमार ने उस वक्त अपनी संभावित हार को भांप लिया होगा, जब स्थानीय लोगों ने उनसे JNU में ‘टुकड़े-टुकड़े’ नारेबाजी पर सवाल दागे थे।
3. हिंदुत्व को हां…
जब भी हिंदुत्व शब्द आता है तो इसको सीधे सांप्रदायिकता से जोड़ दिया जाता है। भाजपा नेता हमेशा हिंदुत्व की बात करते हैं। साथ ही उनका यह भी कहना है कि उनका हिंदुत्व संकुचित नहीं, बल्कि इसका मतलब हर उस शख्स से है जो हिंदुस्तान में रहता है। हिंदुत्व और हिंदुओं की बात करने वाले को तुरंत सांप्रदायिक बता दिया जाता है, जबकि मुस्लिम या किसी भी अन्य संप्रदाय के लोगों की बात करना सामाजिक सौहार्द की निशानी माना जाता है। इस बार के चुनावों ने स्पष्ट कर दिया कि हिंदुत्व को लेकर भाजपा का जो दृष्टिकोण है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। शायद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यह पहले ही समझ गए थे, इसीलिए काफी समय से वह खुद को हिंदू साबित करने में लगे हुए हैं। उनके चुनावी भाषणों में भी हिंदुत्व की बात होती है।
4. वंशवाद को ना…
इस बार के चुनाव ने वंशवाद की बेल को सुखाने का भी काम किया है। इसकी शुरुआत अमेठी से होती है, जहां गांधी परिवार की पारंपरिक सीट से राहुल गांधी चुनाव हार गए। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के परिवार के तीन लोगों का चुनाव हारना भी वंशवाद को नकारे जाने का प्रमाण देता है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तो चुनाव जीत गए, लेकिन उनकी पत्नी डिंपल यादव, चचेरा भाई अक्षय यादव की सीट नहीं बचा पाए। इनके अलावा पार्टी से अलग हुए शिवपाल यादव भी चुनाव हार गए। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती भी पाटलीपुत्र से चुनाव हार गईं। यही नहीं बिहार में RJD को एक भी सीट न मिलना भी वंशवाद को नकारे जाने का उदाहरण है।
5. राष्ट्रवाद की बारी
जिस तरह से पीएम मोदी ने राष्ट्रवाद को हर जुबां पर ला दिया और फिर भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला, उससे तय है कि देश में राष्ट्रवाद की लहर है। Pulwama Terror Attack के बाद देश में जो गुस्सा और राष्ट्रीय भावना पनपी थी, उसे बालाकोट एयर स्ट्राइक (Surgical Strike-2) के जरिए और बल मिला। रही-सही कसर विपक्ष ने तीन साल पहले Surgical Strike के बाद एयर स्ट्राइक (Surgical Strike-2) पर सवाल उठाकर पूरी कर दी। कई नेताओं ने पाकिस्तान स्थित बालाकोट में भारतीय वायुसेना की एयरस्ट्राइक में मारे गए आतंकियों के आंकड़ों पर सवाल उठाया तो किसी ने एयरस्ट्राइक को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। यही नहीं विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई के लिए लोगों की नजरें टीवी पर टिकी रही। पाकिस्तानी F16 विमान को मार गिराने के बाद अभिनंदन के विमान के क्रैश होने और फिर उनके पाकिस्तान की गिरफ्त में आने से लेकर रिहाई ने राष्ट्रवाद को हवा दी। विपक्ष ने इन सब पर जितने ही सवाल उठाए, उतना ही मतदाताओं ने उनके खिलाफ बढ़-चढ़कर वोट किया।
6. जातिवाद पर भी मोदी भारी
लोकसभा चुनाव के नतीजे जिस तरह से आए हैं, उससे एक बात तो स्पष्ट है कि इस बार जाति का कार्ड नहीं चला। खासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार में जिस तरह से NDA को सफलता मिली है, उसने निश्चित तौर पर जातीय समीकरणों को ध्वस्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा और माना जा रहा था कि MY (मुस्लिम-यादव) फैक्टर बड़ी सफलता हासिल करेगा, लेकिन इस गठबंधन को सिर्फ 15 ही सीटें मिल पाईं। जबकि जाति की राजनीति करने वाली कई अन्य पार्टियों का यहां खाता भी नहीं खुल पाया। इसी तरह बिहार में राजद, रालोसपा और हम का सफाया होना भी जातिवाद की राजनीति के सूरज के डूबने का संकेत है।
7. न गरमी न लंबी प्रक्रिया
Lok Sabha Election 2019 की चुनाव प्रक्रिया सात चरणों में करीब डेढ़ महीने तक चली। इस दौरान आम लोगों ने तो इस लंबी प्रक्रिया पर सवाल उठाए ही। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी लंबी चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाए और इस संबंध में सर्वदलीय बैठक बुलाने तक की मांग कर दी। यही नहीं अप्रैल-मई के महीने प्रचंड गर्मी के महीने होते हैं, इसलिए मतदान पर असर पड़ने की बात कही गई थी। जिस तरह का परिणाम रहा है और मतप्रतिशत भी बढ़ा है, उससे स्पष्ट है कि लंबी चुनावी प्रक्रिया और प्रचंड गर्मी जैसे तर्क भी कहीं नहीं ठहरते हैं।
8. शख्सियतें ढेर
इस चुनाव ने एक बात और स्पष्ट कर दी है बड़े-बड़े नाम कोई मायने नहीं रखते। इस चुनाव में ऐसे-ऐसे नाम चुनावी समर में ध्वस्त हुए हैं, जिनके हारने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। इनमें चौकाने वाला नाम अमेठी से राहुल गांधी, मध्यप्रदेश की गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया, कन्नौज से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से शिवपाल यादव, पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा, मल्लिकार्जुन खड़गे, शीला दीक्षित, हरीश रावत, शिबू सोरेन, संबित पात्रा, मनोज सिन्हा, अजित सिंह, दिग्विजय सिंह, मीसा भारती, कीर्ति आजाद, एचडी देवेगौड़ा, भुपेंद्र सिंह हुडा, महबूबा मुफ्ती, अशोक चव्हाण जैसे नाम हैं।
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