सूत कातकर 74 महिलाएं चला रहीं परिवार, गांधी जयंती पर पढ़ें कैसे चरखा दे रहा रोजगार,

आजादी की लड़ाई में चरखे ने एक सिंबल के तौर पर लोगों में उत्साह का संचार किया था, वही चरखा शाहजहांपुर में अब आर्थिक उन्नति का पर्याय बन रहा है। यहां 74 परिवार की महिलाएं चरखे से सूत कातती हैं, जिसके एवज में उन्हें अच्छी आमदनी होती है और उनका परिवार चलता है। यह सारा काम जिले के विनोबा सेवा आश्रम की ओर से किया जा रहा है।
दरअसल, गांधी जी और बिनोवा जी के विचारों से प्रेरित होकर बिनोवा सेवा आश्रम के संचालक रमेश भैया ने 1988 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में स्थित बरतारा गांव में चरखे से सूत कातने का प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया था। जमनालाल बजाज और यश भारती पुरस्कार से सम्मानित रमेश भैया बताते हैं कि अब तक 300 महिलाओं को चरखे से सूत कातने का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। अभी बरतारा में 74 महिलाएं चरखे से सूत कातकर परिवार का खर्च चलाती हैं। उन्होंने बताया कि विनोबा सेवा आश्रम में अब नई तकनीक के चरखे लगाए जायेंगे, महिलाओं को चरखा चलाने में कोई समस्या न हो इसके लिए अब 20 सोलर चालित चरखे लगाए जायेंगे।
रमेश भैया ने बताया कि आश्रम की ओर से महिलाओं को एक किलो की पूनी दी जाती है, जिससे सूत कातकर आश्रम को वापस करतीं हैं। प्रति किलो सूत के बदले उन्हें 125 रुपये दिए जाते हैं। बरतारा की वीरा देवी, मुन्नी शुक्ला, विनीता, शिव देवी, शीला, छोटी, सुनीता, मीना देवी, फूला देवी कहती हैं कि एक दिन में 3 किलो तक सूत तैयार कर लेती हैं।