ब्रिटेन का हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह से ठप पड़ गया है। स्वास्थ्यकर्मियों की हड़ताल और सेवाएं ठप पड़ने से मरीज अस्पतालों के फर्श, गलियारों, फंसी हुई एंबुलेंस और अन्य जगहों पर मर रहे हैं। रॉयल कॉलेज ऑफ इमरजेंसी मेडिसिन के अध्यक्ष एड्रियन बॉयल के अनुसार, ‘हर सप्ताह करीब 500 लोगों की इलाज के अभाव में जान जा रही है।’
ब्रिटेन के डॉक्टर अस्पतालों की हालत युद्धग्रस्त यूक्रेन से भी बदतर बता रहे हैं।इस साल ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (ओबीई) से सम्मानित डॉक्टर पॉल रैनसम ने कहा कि हमारे अस्पतालों की स्थिति यूक्रेन और श्रीलंका से भी खराब है।
डॉक्टर पॉल रैनसम ने बताया कि गलियारों में इलाज के इंतजार में पड़े मरीजों काे लेकर अपनी बेबसी भी जाहिर की। उन्होंने कहा, ‘मैं जब अपने एनएचएस सहयोगियों को मरीजों की देखभाल में अक्षम पाता हूं तो खुद को दोषी मानने लगता हूं। मैंने यूक्रेन, जॉर्जिया, श्रीलंका, जिम्बाब्वे जैसे देशों में भी मरीजों को गलियारों में पड़े हुए देखा है।
उस हिसाब से हमारे यहां की हालत और खराब हैं। नर्सिंग स्टाफ के लिए ये तय करना मुश्किल हो रहा है कि कौन सा मरीज सबसे गंभीर है और इलाज के लिए किसे भीड़ भरे इमरजेंसी रूम में बुलाएं।’
ब्रिटेन जितनी बदतर स्वास्थ्य सेवाएं और किसी यूराेपीय देश में नहीं हैं। दरअसल, ब्रिटेन में स्वास्थ्य सेवा, अस्पताल का संचालन और फंड राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं(एनएचएस) के तहत सरकार द्वारा किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में कंजरवेटिव सरकारों ने अस्पतालों का फंड घटाकर, कर्मचारी कम कर दिए हैं।
कर्मचारियों का वेतन भी कम है। मेडिकल व्यवस्थाओं के चरमराने का अंदाजा इसी से लगता है कि अगर किसी सामान्य मरीज को फिजीशियन को दिखाना है, तो उसे 6 से 9 महीने बाद की तारीख मिल रही है। अगर बड़ा ऑपरेशन कराना है, तो उसे 18 महीने तक इंतजार करना पड़ रहा है। ये स्थिति बीते महीने तब और विकराल हाे गई, जब वेतन बढ़ाने और कामकाजी स्थिति सुधारने की मांग को लेकर एनएचएस नर्सों और एंबुलेंस स्टाफ हड़ताल पर चला गया।
जब ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री के तौर पर पद संभाला था, तो उन्होंने वादा किया था कि एनएचएस के लिए अधिक नर्सों और डॉक्टरों की भर्ती की जाएगी, ताकि मरीजों को डॉक्टर से परामर्श लेने में लंबे समय तक इंतजार न करना पड़े। साथ ही 7000 बेड बढ़ाए जाएंगे। लेकिन उनके वादे के आगे अब तक कुछ नहीं हुआ।
बुधवार को परेशानी तब और बढ़ गई, जब नर्सों और एंबुलेंस स्टाफ ने सरकार के वेतन वृद्धि के प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह बेहद कम है। देश में 10 लाख स्वास्थ्यकर्मी और एंबुलेंस स्टाफ 14 यूनियनों से जुड़े हुए हैं। ये यूनियन स्वास्थ्य मंत्री से चर्चा करना चाहती हैं।
ब्रिटेन के अस्पतालों ने मरीजों को चेतावनी देना शुरू कर दिया है कि जब तक जान का खतरा न हो, तब तक इमरजेंसी विभाग में न आएं। उत्तरी ब्रिटेन केबेड, स्ट्रेचर खाली नहीं होने से बुजुर्ग ने पत्नी के सामने अस्पताल के फर्श पर दम तोड़ दिया। नाम न छापने की शर्त पर डॉक्टर ने बताया कि स्थिति कोविड जितनी ही खराब है।
जिसने दम तोड़ा उसे अस्पताल आने के लिए 9 घंटे तक एम्बुलेंस नहीं मिली। एक महिला को छाती में संक्रमण था। इमरजेंसी में समय पर इलाज नहीं मिला और उसकी जान चली गई। उसे एंबुलेंस के लिए 10 घंटे इंतजार करना पड़ा। एक बुजुर्ग की जान देखभाल न हो पाने से चली गई।
सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं चरमराने से प्राइवेट एंबुलेंस कंपनियां कमाई में जुट गई हैं। कम दूरी तक के अस्पतालों में पहुंचाने के लिए 600 पाउंड (करीब 60 हजार रु.) और ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों से 1300 पाउंड (करीब 1.28 लाख रुपए) वसूल रहीं हैं। आंकड़ों के मुताबिक प्राइवेट एंबुलेंस की मांग तेजी से बढ़कर दोगुनी हाे चुकी है।