यूपी सरकार की चेतावनी के बाद भी बिजली कर्मचारियों की हड़ताल 55 घंटे से जारी है। इससे आम आदमी के साथ सरकार की भी परेशानी बढ़ गई हैं। शनिवार रात ऊर्जा मंत्री और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बीच 3 घंटे की मैराथन बैठक हुई। मगर, इसमें कोई नतीजा नहीं निकला।बिजली कटौती से करीब 50 लाख उपभोक्ता परेशान हैं।
हड़ताल करने वालों पर सरकारी कार्रवाई बढ़ती जा रही है। अब तक 3 हजार से ज्यादा संविदा कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा चुका है। वहीं, संघर्ष समिति के 22 कर्मचारी नेताओं पर एस्मा लगाया गया है। इसके अलावा 29 अन्य लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया है। दूसरी तरफ प्रदर्शनकारियों ने ऐलान किया है कि ऐसे ही दमन की कार्रवाई होती रही, तो रविवार रात 10 बजे के बाद भी हड़ताल जारी रखा जाएगा और उसको अनिश्चितकालीन हड़ताल में तब्दील कर दिया जाएगा।
बिजली कर्मचारी नेताओं और ऊर्जा विभाग की इस लड़ाई में आम आदमी की परेशानी बढ़ गई है। स्कूली बच्चों का एग्जाम होने हैं। इन्वर्टर बैटरी भी अब चार्ज नहीं रह गई है। लखनऊ समेत प्रदेश के सभी शहरों में नाराज लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने लगे हैं। स्थिति यह है कि नाराज लोगों ने नेशनल हाईवे तक जाम करना शुरू कर दिया है। प्रशासन और पुलिस के लोग भी अब स्थिति संभालने में दिक्कत हो रही है।
सरकार ने एस्मा के साथ पदाधिकारियों को निलंबित कर दबाव बनाने की कोशिश की है। शनिवार रात तक जेई संगठन के जय प्रकाश, जीवी पटेल, अभियंता संघ के जितेंद्र सिंह गुर्जर, प्रभात के अलावा सीवी उपाध्याय और वसीम अहमद को निलंबित कर दिया। इन पर कर्मचारियों को हड़ताल के लिए उकसाने का आरोप है। इनका लखनऊ से बाहर तबादला किया गया है।
एस्मा की कार्रवाई के बाद संघर्ष समिति ने पटलवार किया है। समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा, ”हम भगोड़े नहीं हैं। हम कहीं नहीं जा रहे हैं। पुलिस हमें गिरफ्तार कर सकती है। जनता जो दंड देगी, हम तैयार हैं। ऊर्जा निगम नशे के मद में चूर है। हमने 16 फरवरी को नोटिस में 1 महीने का समय दिया था। जिनको वैकल्पिक व्यवस्था करनी थी, उनसे क्यों नहीं पूछा।”
उन्होंने कहा कि हम पर आरोप लगा कि हमने तोड़फोड़ की है। हमने कहीं हिंसा नहीं की। आपकी सरकार और जांच एजेंसी है। बिना जांच के हम पर आरोप लगा दिया।
शैलेंद्र का कहना है, ”ऊर्जा मंत्री ने कहा था देश की संपत्ति के साथ कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मैं इस आरोप को नकार रहा हूं, क्योंकि ऊर्जा विभाग हमारी जननी है। यहीं से हम रोजगार पाते हैं और अपना पेट पालते हैं। इतिहास में पहली बार हो रहा है कि ऊर्जा मंत्री के साथ हुए समझौते को ऊर्जा के MD मनाने को इनकार कर रहे हैं।”
एक तरफ से प्रदेश में बिजली संकट बढ़ा है, दूसरी तरफ मंत्री का कहना है कि सिर्फ 2 फीसदी सप्लाई प्रभावित है। उन्होंने कहा कि हम कई बार हड़ताल खत्म करने की बात की चुके हैं। आवश्यक सेवा को बाधित करना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि 22 कर्मचारियों पर एस्मा के तहत कार्रवाई की जाएगी। उन्हें एक साल के लिए जेल भेजा जाएगा।’
विभागीय सूत्रों का कहना है कि 24 घंटे तक कोई खास असर नहीं रहा, लेकिन दूसरे दिन परेशानी बढ़ गई है। हड़ताल के 55 घंटे गुजरने के बाद प्रदेश के 5 हजार से ज्यादा गांव में बिजली समस्या बढ़ गई है। गांव में लोग अपना मोबाइल तक चार्ज नहीं कर पा रहे हैं। पूरे प्रदेश में अब तक करीब 50 लाख से ज्यादा उपभोक्ता बिजली संकट से परेशान हो चुका है। पूर्वांचल, पश्चिमांचल, दक्षिणांचल और मध्यांचल समेत केस्को और नोएडा पावर कंपनी में कर्मचारियों की हड़ताल का असर अब बढ़ गया है। संविदा कर्मचारियों को निकालने के बाद भी राहत मिलती नहीं दिख रही है। बताया जा रहा है कि रविवार को अगर हड़ताल जारी रही तो परेशानी बढ़ जाएगी। लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, मेरठ, आगरा और बरेली समेत कई शहरों में जबरदस्त संकट पैदा हो गया है।
सरकार से लेकर प्रशासन सप्लाई ठीक रखने के लिए जोर लगाए है, लेकिन कर्मचारियों के बिना यह मुश्किल हो रहा है। उधर, लगातार कटौती से लोगों का सब्र का बांध टूट रहा है। बिजली सप्लाई बाधित होने से औद्योगिक शहरों कानपुर, गोरखपुर जैसे शहरों में फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं। लखनऊ के भी बड़े इलाके में भी बिजली संकट है। लोग बिजली सब-स्टेशन पहुंचकर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। कुशीनगर, बलिया, देवरिया, गोरखपुर और प्रतापगढ़ में 242 संविदा कर्मचारियों को बाहर कर दिया है।
बिजली कर्मचारी नेताओं ने कहा कि अभी तक कई लोग अपना नंबर बंद कर लेते थे लेकिन अब सभी नेता 24 घंटे अपना नंबर चालू रखेंगे। अगर लोकेशन का पता कोई गिरफ्तारी करना चाहता है तो वह उनको पकड़ सकता है। यह भी कहा गया है कि नेताओं की गिरफ्तारी के साथ जेल भरो आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। ऐसे में बवाल से बचने के लिए लखनऊ समेत कई जिलों में बिजली विभाग के ऑफिस पर PAC तैनात कर दी गई है।
ऊर्जा मंत्री ने हड़ताल में शामिल होने वालों को कई बार चेतावनी दी, लेकिन उसका असर अभी तक हड़ताल में नहीं दिखा है। 20 संगठन अभी भी हड़ताल में शामिल हैं। मंत्री ने कहा था कि बिजली सप्लाई में बाधा डालने वाले कर्मचारियों को पाताल से खोजकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन, उससे सप्लाई बेहतर होती दिख नहीं रही है।
इससे पहले, साल 2000 में कर्मचारियों ने बिजली विभाग के एकीकरण को लेकर पूरे प्रदेश में प्रदर्शन किया था। अब 23 साल पर हड़ताल हो रही है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में अप्रैल से पहले उपकेंद्रों के मरम्मत का काम चल रहा है। हड़ताल के चलते मरम्मत का काम प्रभावित हो रहा है।
इसके अलावा लोगों को नए कनेक्शन मिलने में दिक्कत हो रही है। अगर कोई उपभोक्ता अपना बिल सही कराने के लिए उपकेंद्र जाता है, तो उसको भी परेशानी झेलनी पड़ेगी। साथ ही अगर कहीं फॉल्ट आता है, तो बिजली कर्मचारी उसको बनाने से इनकार भी कर सकते हैं।
आंदोलन में शामिल सीटू के प्रदेश सचिव प्रेमनाथ राय का कहना है कि कर्मचारियों पर तोड़-फोड़ का आरोप लगाया जा रहा है। यह बिल्कुल गलत है। सच्चाई यह है कि आंदोलन को कमजोर करने और हड़ताल खत्म करने के लिए खुद सरकार के लोग बिजलीघर पहुंचकर तोड़-फोड़ कर रहे हैं। यहां तक की जनता के बीच गलत प्रचार किया जा रहा है। हमारी लड़ाई जनता के लिए है। निजीकरण के बाद बिजली महंगी होगी। उसका असर सीधे आम आदमी की जेब पर पड़ेगा।