बुधवार को दो धमाकों में ईरान के केरमन शहर में 103 लोग मारे गए

ईरान के केरमन शहर में बुधवार को दो धमाकों में 103 लोग मारे गए। 141 लोग घायल हुए हैं। धमाके रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (ईरान की सेना) के पूर्व जनरल कासिम सुलेमानी के मकबरे पर हुए। देश में गुरुवार को राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है। ईरान के हेल्थ मिनिस्टर ने कहा है कि ये ईरान की धरती पर हुआ अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है।
दोनों धमाकों के बीच 20 मिनट का अंतर था। पहला धमाका सुलेमानी के मकबरे से 700 मीटर दूर हुआ। दूसरा धमाका, सिक्योरिटी चेक पोस्ट के करीब हुआ। दरअसल, बुधवार को कासिम सुलेमानी की मौत की चौथी बरसी थी। सुलेमानी को 2020 में अमेरिका और इजराइल ने बगदाद में एक मिसाइल अटैक में मार गिराया था।
ईरान में हुए धमाकों की अब तक किसी संगठन ने जिम्मेदारी नहीं ली है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक ईरान अकसर अपने देश में होने वाले हमलों के पीछे ईरान को जिम्मेदार ठहराता है। हालांकि, एक अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक ये हमला आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के तरीकों से किया गया है।
विस्फोटकों से भरे 2 ब्रीफकेस कब्रिस्तान के बाहर मेन गेट के पास रखे गए थे। इनमें रिमोट कंट्रोल की मदद से ब्लास्ट किया गया। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक- जब सिक्योरिटी फोर्स मौके पर पहुंचने लगीं तो भीड़ में दूसरा धमाका हुआ।
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने हमले को क्रूर और अमानवीय बताया है। उन्होंने कहा- इस हमले के पीछे जो भी हैं उन्हें सजा मिलेगी। ईरान के दुश्मनों को पता होना चाहिए कि इस तरह के हमलों से हमें नहीं तोड़ा जा सकता है।
वहीं ईरान की सुप्रीम लीडर अयातुल्लाखुमैनी ने हमले का बदला लेने की कसम खाई है। ईरान ने आधिकारिक तौर पर अब तक किसी को हमले का जिम्मेदार नहीं ठहराया है। हालांकि, ईरान की कुद्स फोर्स के कमांडर इस्माइल कानी ने कहा है कि हमला इजराइल और अमेरिका के एजेंट्स ने किया है।
ईरान में बुधवार का धमाका बेरूत में हमास के डिप्टी लीडर सालेह-अल अरूरी की मौत के एक दिन बाद हुआ है। ईरान ने अल-अरूरी की हत्या की निंदा की थी और इजराइल के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखने को कहा था।
पिछले महीने ही इजराइल ने सीरिया में ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के एडवाइजर राजी मोसावी को मार गिराया था। मोसावी को मारने के लिए की गई स्ट्राइक सीरिया में सुलेमानी की कब्र से 700 मीटर की दूरी पर हुई थी

ईरान की सेना में एक अल-कुद्स यूनिट या डिवीजन है। वहां की सेना को रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कहा जाता है। अल-कुद्स के बारे में कहा जाता है कि कि ये ईरान के बाहर दूसरे देशों में सीक्रेट मिलिट्री ऑपरेशंस चलाती है। सुलेमानी 1998 में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की स्पेशलिस्ट एजेंट्स की टुकड़ी ‘कुद्स आर्मी’ के प्रमुख बने थे।
जनरल कासिम सुलेमानी इसी यूनिट के चीफ थे। 2020 में मारे जाने से पहले उन्होंने सऊदी अरब और इराक के अलावा कुछ और देशों में भी सीक्रेट ऑपरेशंस किए थे।
ईरान में उन्हें आज भी नेशनल हीरो माना जाता है। एक वक्त उनकी लोकप्रियता देश में सबसे ज्यादा बताई गई थी। हालांकि ये कभी साफ नहीं हुआ कि सुलेमानी को किस तरह के पावर्स हासिल थे।
अमेरिका के ‘कार्नेगी रिसर्च फाउंडेशन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जनरल सुलेमानी जब जिंदा थे तो वो हर उस ताकत की मदद करते थे जो सऊदी अरब की दुश्मन हो। उन्होंने सीरिया और इराक को सऊदी अरब के खिलाफ खड़ा किया। इसके बाद यमन के हूती विद्रोहियों को हर तरह की मिलिट्री सहूलियत दी ताकि वो सऊदी अरब के अहम ठिकानों पर हमले करते रहें और इससे सऊदी अरब की इकोनॉमी ईरान की तुलना में काफी कमजोर हो जाए।
3 जनवरी 2020 को सुलेमानी सीरिया विजिट पर गए थे। वहां से चुपचाप इराक की राजधानी बगदाद पहुंच गए। अमेरिकी और इजराइली इंटेलिजेंस एजेंसीज को इसकी जानकारी मिल गई।
उनके समर्थक शिया संगठन के अफसर उन्हें विमान के पास ही लेने पहुंच गए थे। एक कार में जनरल कासिम और दूसरी में शिया सेना के प्रमुख मुहंदिस थे। जैसे ही दोनों की कार एयरपोर्ट से बाहर निकलीं, वैसे ही रात के अंधेरे में अमेरिकी एमक्यू-9 ड्रोन ने उस पर मिसाइल दाग दी।
कहा जाता है कि तब के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आदेश पर CIA ने इस मिशन को अंजाम दिया। 2019 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान को न्यूक्लियर ट्रीटी तोड़ने पर तबाही की धमकी दी थी, तो जनरल कासिम ने कहा था- जंग ट्रम्प ने शुरू की है, इसे खत्म हम करेंगे। ईरान का दावा है कि इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद ने अमेरिका को सुलेमानी की विजिट की पुख्ता जानकारी दी थी और वो भी इस ऑपरेशन में बराबर की हिस्सेदार थी।
सुलेमानी की मौत के बाद ईरान ने भी बगदाद में अमेरिकी दूतावास पर 7-8 जनवरी 2020 को हमले किए थे। ईरान के सुप्रीम लीडर अली हसन खामेनेई ने भी सुलेमानी के मारे जाने के बाद से पश्चिम एशिया से सभी अमेरिकी सैनिकों को खदेड़ने की धमकी दी थी। 7 जनवरी 2020 को ईरान ने इराक में स्थित दो अमेरिकी सैन्य बेसों पर 22 मिसाइलें दागी थीं। ईरान ने दावा किया था कि इस हमले में अमेरिका के 80 सैनिक मारे गए थे।
ईरान से किसको, क्या दिक्कत?
अमेरिका : अमेरिका के अरब देशों और इजराइल से करीबी रिश्ते हैं। कुछ देशों में उसके मिलिट्री बेस हैं। अमेरिका को लगता है कि ईरान ने एटमी ताकत हासिल कर ली तो अरब देशों के साथ उसके हितों को भी काफी नुकसान होगा।
अरब देश : सुरक्षा और हथियारों के लिए अरब देश 80% तक अमेरिका पर निर्भर हैं। ईरान शिया जबकि अरब देश सुन्नी बहुल हैं। अरब देशों की शाही हुकूमतों को लगता है कि ईरान एटमी ताकत बन गया तो वो इसका इस्तेमाल उनके खिलाफ कर सकता है। इसलिए वो अमेरिका पर डिपेंड रहते हैं। हालांकि अब चीन इस दबदबे को तोड़ने की कोशिश कर रहा है।
इजराइल : अरब देशों के लिए इजराइल पहले ईरान की तरह ही दुश्मन देश था। अब बहरीन और यूएई के बाद सऊदी अरब भी उसके करीब आ रहा है। अरब देशों के पेट्रो डॉलर और इजराइल की टेक्नोलॉजी-मिलिट्री पावर ईरान को रोकने में लगी है। ईरान और इजराइल के रिश्ते अमेरिका, फिलिस्तीन और अरब देशों की वजह से बिल्कुल खत्म हो चुके हैं। वे दुश्मन देश हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक ईरान सीधे तौर पर इजराइल से नहीं टकराना चाहता। लिहाजा, वह हमास और हिजबुल्लाह के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहा है। वह ऐसी हरकत पहले भी करता रहा है, लेकिन इस बार 7 अक्टूबर को जो कुछ हुआ वह बहुत खतरनाक था। 1200 इजराइली मारे गए।
रिपोर्ट कहती है- हमास, इस्लामिक जिहाद इन फिलिस्तीन और हिजबुल्लाह जैसे कट्टरपंथी गुटों के जरिए ईरान दुश्मनों पर हमले कराता है। इसका सीधा मकसद यह है कि इजराइल और अमेरिका जैसे ताकतवर देशों से उसकी सीधी जंग न हो। हिजबुल्लाह के जरिए ईरान मुल्क में अपने कट्टरपंथी एजेंडे को भी बढ़ावा देता है।
हिजबुल्लाह के लीडर हसन नसरल्लाह को ईरान के सर्वोच्च धार्मिक गुरु अली खामेनेई का करीबी माना जाता है। हिजबुल्लाह भी उसी कट्टरपंथी विचारधारा को मानता है जो खामेनेई और वर्तमान ईरान सरकार की है।