लखनऊ चिड़ियाघर में असहज करने वाली खामोशी है। जोर से चहकने वाले पक्षी, दहाड़ने वाले शेर और अपने बाड़े में कूदने वाले भालू आज शांत हैं। इस सन्नाटे की वजह है बाघ ‘किशन’। जू के सबसे खूबसूरत बाघ किशन की शुक्रवार देर शाम मौत हो गई। 13 साल तक कान और मुंह के कैंसर से लड़ते हुए किशन ने लखनऊ प्राणि उद्यान चिकित्सालय में आखिरी सांस ली। उसके जाने का दर्द चिड़ियाघर प्रशासन के अधिकारियों के साथ-साथ मानों जू के सभी जानवरों के चेहरे पर साफ जाहिर हो रहा है।
साल 2009, यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के 10 गांवों में लोग शाम होने से पहले घरों में कैद हो जाते थे। महिलाएं ‘किशन’ की दहशत के कारण बच्चों को स्कूल तक नहीं भेजती थी। हालत यह थी कि लोग रात में बीमार भी होते, तो अस्पताल जाने से घबराते थे। ये डर लाजमी था क्योंकि, किशन ने इन गांवों के 5 लोगों को जिंदा ही कच्चा चबा लिया था। वहीं, 10 से ज्यादा लोगों को अधमरा कर दिया था।
2009 में दुधवा टाइगर रिजर्व की किशनपुर रेंज से ‘किशन’ को रेस्क्यू कर लखनऊ चिड़ियाघर लाया गया। किशनपुर रेंज से पकड़े जाने के कारण उसका नाम ‘किशन’ रखा गया।
किशन का इलाज कर रहे लखनऊ चिड़ियाघर के वरिष्ठ चिकित्सक अशोक कहते हैं, “एक बाघ की उम्र करीब 15 साल होती है। लेकिन, किशन ने अपनी पूरी उम्र कैंसर में बिताई। यानी कि उसने अपनी औसत उम्र से ज्यादा जीवन बिताया। जानलेवा बीमारी से ग्रस्त बाघ 10 साल भी नहीं जी पाता। लेकिन, किशन की इम्यूनिटी इतनी स्ट्रॉन्ग थी कि वो कैंसर से 13 साल तक लड़ता रहा।”
डॉ. अशोक बताते हैं, “लगातार ट्रीटमेंट के बाद किशन हमें पहचानने लगा था। 7 महीने पहले जब हम उसे एंटी कैंसर डोज देने पहुंचे, तो वो हमें देखकर तेजी से पूंछ हिलाने लगा। बाघों में पूंछ हिलाने का मतलब होता है कि वो खुश हैं। ट्रीटमेंट के हर स्टेज में वो कभी परेशान नहीं हुआ।”
चिड़ियाघर में किशन के बाड़े के ठीक बगल में रेनू बाघिन का बाड़ा है। जब भी रेनू अपने बाड़े में चहलकदमी करती है, तो किशन भी अपनी गुफा से बाहर निकल आता। दोनों नरभक्षी लखीमपुर के जंगलों से रेस्क्यू कर लखनऊ लाए गए थे। कैंसरग्रस्त किशन परेशान न हो, इसके लिए रेनू को उसके बगल में रखा गया।
लखनऊ जू के डायरेक्टर पीके मिश्रा ने बताया, “मृत्यु से करीब एक महीने पहले से किशन ने खाना त्याग दिया था। वो सिर्फ पानी ही पीता था। हम उसे मुर्गे का मीट देते, तो वहां उसकी तरफ देखता तक नहीं था। उसे पिंजरे में पुआल का गद्दा दिया गया था, वह पूरा दिन उसी में लेटा रहता था।”
निदेशक पीके मिश्रा के मुताबिक, किशन की हिम्मत और चिड़ियाघर प्रशासन की मेहनत ने उसे कैंसर से लड़ने में मदद की। उसकी देखभाल के लिए लखनऊ प्राणी उद्ययान चिकित्सालय, IVRI बरेली और फैजाबाद के नरेंद्रदेव विटनरी अस्पताल के डॉक्टर 13 साल तक लगे रहे।जब किशन को लखनऊ जू में लाया गया, तब वो केवल 3 साल का था। जू में लाए जाने के महीने भर बाद रूटीन चेकअप के दौरान किशन के दाहिने कान पर एक घाव दिखा। इसके बाद चिड़ियाघर प्रशासन ने तुरंत उसकी बायोप्सी की जिसमें ‘मेनिनजियोमा सार्कोमा’ डिटेक्ट हुआ।
डॉ. अशोक ने बताया, “जिस दिन IVRI, बरेली की जांच में किशन के शरीर में कैंसर का पता चला, उस दिन से हमने उसका इलाज शुरू कर दिया। हर महीने उसे एंटी कैंसर ट्रीटमेंट (कीमोथैरेपी) दी गई, जिससे वो ठीक होने लगा। धीरे-धीरे कीमोथेरेपी पीरियड को हर महीने से बढ़ाकर 7 महीने में एक बार कर दिया गया। उसकी आखिरी कीमोथैरेपी मई 2022 में की गई थी।”
बरेली के रहने वाले रामबीर बीते 5 साल से किशन के कीपर हैं। रामबीर कहते हैं,”किशन जब 2009 में चिड़ियाघर में लाया गया था, तब बहुत फुर्तीला। वो जब गुर्राता था, उसकी आवाज पूरे चिड़ियाघर में गूंज उठती थी। पहले दिनभर में 15 किलो मांस खा लेता था, लेकिन आखिरी दिनों में वब ठीक से 5 किलो मांस भी नहीं पचा पाता था।”2017 में जब किशन की तबीयत ठीक होने लगी तो उसे नए बाड़े में शिफ्ट किया गया। जैसे ही वो बाड़े के अंदर पहुंचा, तो वह नीम के 12 फीट ऊंचे पेड़ पर 2 छलांग में चढ़ गया। ऐसी स्थिति दोबारा न आए, इसे देखते हुए उसके बाड़े में लगे विशालकाय पेड़ों को छटवा दिया गया।
जू के केयर टेकर रामबीर बताते हैं, “10 साल पहले किशन का वजन 225 किलो था। अपने बाड़े में जब वो चलता था, तो उसकी फोटो खींचने के लिए लोगों की भीड़ लगती है। 2016 में चिड़ियाघर में 6 बाघ थे। किशन उन सब में सबसे सुंदर और तेज बाघ था।”