पति-पत्नी के बीच तलाक के बाद दर्ज नहीं हो सकता दहेज उत्पीड़न का मामला: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि पति-पत्नी के बीच तलाक हो जाने के बाद किसी भी शख्स या परिजन के खिलाफ दहेज का मामला नहीं दर्ज किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी माना है कि आईपीसी की धारा 498A या दहेज निषेध अधिनियम के किसी भी प्रावधान के तहत दंपत्ति के अलग हो जाने के बाद अभियोजन टिकाऊ नहीं रहेगा। बता दें कि दहेज के प्रावधानों के तहत जुर्माने के साथ अधिक से अधिक 5 साल तक जेल का प्रावधान है।

दरअसल जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव ने आईपीसी की धारा 498 ए के उन शब्दों पर जोर दिया है। जिसमें कहा गया है पति या महिला के पति का रिश्तेदार। इसके बाद पीठ ने कहा कि जब किसी मामले में तलाक हो चुका है। तो वहां यह धारा लागू नहीं होता है। इसी तरह से दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज नहीं हो सकता है।

बहस ज्यादा तर्कसंगत नहीं है

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक मामला पहुंचा था जिसमें एक शख्स और उसके परिजन पीठ के समझ पहुंचे थे कि धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम के तहत उनके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द किया जाए। क्योंकि दंपत्ति के बीच तलाक को चार साल हो चुके हैं। ऐसे में यह मामला तर्कसंगत नहीं है। तब अदालत ने कहा कि इस बहत में ज्यादा वास्तविकता है। पीठ ने कहा कि महिला के कथन के मुताबिक उनका चार साल पहले तलाक हो चुका है, ऐसे स्थिति में हम इस मत में है कि आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेद अधिनियम 1961 की धारा 3/4 के तहत तर्कसंगत नहीं है। इसके बाद कोर्ट ने इस मामले को रद्द कर दिया है।